नमस्ते दोस्तों आज हम आज हम डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध (Essay on Dr Sarvepalli Radhakrishnan In Hindi) लिखेंगे। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध का उपयोग बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।
प्रतावना
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे। शिक्षक दिवस विद्यार्थी वर्ग के लिए ये दिन सबसे ख़ास होता है क्योंकि इन्होने शिक्षा और शिक्षक के महत्त्व को सही मायनो में परिभाषित किया था। यही कारण है की इनके जन्म दिन 5 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 2021 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन की 59वी जयंती मनाई गयी।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए विद्यार्थिओं के प्रोत्साहन हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाये और उनके प्रेरणा के स्त्रोत बने और इसी कारण इनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं।
डॉक्टर सर्वपल्ली भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। इनके गुणों के कारण ही सरकार ने इन्हें कई सर्वोच्च सम्मान से अलंकृत किया था।
जन्म एवं परिवार
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म भारत के तमिलनाडु राज्य में मद्रास जिसका अब नया नाम चेन्नई है। इसके चित्तूर जिले में स्थित तिरूत्तनी ग्राम गाँव में हुआ था राधाकृष्णन तेलगु परिवार में 5 सितम्बर 1888 को हुआ था।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन अत्यंत निर्धन परिवार से थे। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरासमियाह’ और माता का नाम ‘सीताम्मा’ था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पत्नी का नाम शिवकामु था, इनके पांच बेटियों और एक बेटा था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पिताजी राजस्व विभाग के पद पर कार्यरत थे।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पिताजी के कुल 5 संतान थी। जिसमे ये दूसरे नंबर के बेटे थे। परिवार बड़ा होने के कारण राधाकृष्णन पिताजी बहुत ही मुश्किल से अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। इसी वजह से बचपन से ही राधाकृष्णन जी को कभी कोई सुख सुविधाए नसीब नहीं हो पाई।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शिक्षा की शुरुआत 1996 में तिरूपति में स्थित क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल से हुई थी। इन्होने 1900 तक इसी स्कूल में अध्धयन किया।
स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद राधाकृष्णन ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में चार साल तक अध्धयन किया और यहाँ से उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने बाद उन्हें क्रिश्चियन कॉलेज, से कई छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई।
1906 ने दर्शनशास्त्र में एम०ए० करने के बाद वे 1918 में मैसुर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर भी बने। डॉ॰ राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से पूरी दुनिया को भारतीय दर्शन शास्त्र के बारे में बताया था। इसके लिए उनकी काफी प्रशंसा की गयी। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जीवन काल में 40 वर्षो तक शिक्षक के रूप में काम किया था।
जन्मदिन को शिक्षक दिवस मनाने की वजह
1962 में डॉ राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने तो उनके प्रिय छात्रों ने राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को एक विशेष दिन के रूप में मनाने की इच्छा जाहिर की थी।
डॉ राधाकृष्णन हमेशा से ही शिक्षकों के महत्त्व और उनके योगदान को महत्वपूर्ण मानते थे इसलिए उनकी इच्छा थी की 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए।
डॉ राधाकृष्णन ने छात्रों को कहा की “मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो यह मेरे लिए गौरव की बात होगी।” तभी से उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का केरियर
मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में, एम.ए की पूरी करने के बाद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1909 में सहायक लेक्चरर के रुप में रहे 1918 में मैसूर यूनिवर्सिटी में इन्होने दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के पद पर कार्य किया।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत में दर्शन कुर्सी के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था। 1929 में, राधाकृष्णन को हैरिस मैनचेस्टर कॉलेज में प्रिंसिपल के पद के लिए चुना गया।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1931 से आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में काम किया। 1936 में, उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नैतिकता के स्पेलिंग प्रोफेसर के रूप में नामित किया गया, और ऑल सोलो सोल कॉलेज के फेलो बन गए।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने आंध्र विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी और दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर के पद पर कार्य किया हे। 1946 में यूनेस्को 1949 में सोवियत यूनियन के एंबेस्डर के रुप में भी नियुक्त किया गया।
भारतीय स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने यूनेस्को में देश का प्रतिनिधित्व किया और बाद में सोवियत संघ (1949-1952) में भारत के राजदूत के लिए नियुक्त हुए तथा वह भारत की संविधान सभा के लिए भी चुने गए थे।
राधाकृष्णन को 1952 में भारत के पहले उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया था और बाद में वे (1962-1967) भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ कृष्णार्पण चैरिटी ट्रस्ट का भी गठन किया।
छात्रवृत्तियां
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने शैक्षिक जीवन काल में कई प्रकार की छात्रवृत्तियां प्राप्त की। क्रिश्चियन कॉलेज, और मद्रास कॉलेज ने उन्हें कई छात्रवृत्ति दी।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पुरस्कार
1954 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सन् 1961 में जर्मन बुक ट्रेड के शांति पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था।
1963 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को ऑर्डर ऑफ मेरिट और 1975 में टेम्पलटन पुरस्कार प्रदान किया गया। मगर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपनी पुरस्कार की राशि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को दान कर दी।
उपसंहार
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी वे हमेशा विद्यार्थियो को शिक्षा बेहतर देकर उनके अच्छे भविष्य लिए प्रयासरत रहते थे।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक शिक्षक ही नहीं बल्कि एक अच्छे विद्वान, वक्ता, प्रशासक और राजनयिक के अलावा एक देशभक्त भी थे।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के गुणों को हम इस तरह से समझ सकते है की वे एक शिक्षक थे मगर उन्होंने महत्वपूर्ण क्षेत्रो में ऊँचे ऊँचे पदों पर कार्य किया। जिसमे विश्वविद्यालय चांसलर के साथ भारत के भावी राष्ट्रपति भी बने और उन्हें बेहतर तरीके से भी संभाला।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जीवन में विद्यार्थियो के बेहतर भविष्य के लिए अनेक पदों कार्य किया उनका मुख्य उद्देश यही था की अगर शिक्षक सही तरीके से विद्यार्थियो को शिक्षा दे तो एक सुनहरे भविष्य का निर्माण किया जा सकता है। इसी वजह से डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक की भूमिका को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे।
तो ये था डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में निबंध। उम्मीद करता हूँ डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध (Essay on Dr Sarvepalli Radhakrishnan In Hindi) आपको जरुर पसंद आया होगा । अगर पसंद आये तो इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें।
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